लखनऊ हत्याकांडː स्थानीय लोगों ने चंदा जुटाकर निकला जनाजा, संभल में दफनाए गए अरशद की मां और चारों बहनों के शव
लखनऊ हत्याकांड में मारी गई अस्मा और उनकी चार बेटियों का शुक्रवार को संभल स्थित मायके में दफनाया गया। यह घटना न केवल एक दिल दहला देने वाली हत्या की कहानी है, बल्कि एक परिवार की संघर्षमयी स्थिति को भी उजागर करती है। इस दफनाने की प्रक्रिया में जो परिस्थितियां सामने आईं, वे एक दुखभरी दास्तान से कम नहीं हैं, जहाँ एक गरीब परिवार को कड़ी मेहनत और उधारी से अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करना पड़ा।

क्या था पूरा मामला?
अस्मा, जो कि संभल के सरायतरीन इलाके के फकरे आलम की बेटी थीं, का विवाह 2000 में बदायूं के बदर अली से हुआ था। शादी के बाद उनकी जिंदगी में विवादों का सिलसिला शुरू हुआ, जो समय के साथ और भी गहरा गया। बदर अली ने अपनी पत्नी अस्मा और उनके बच्चों के साथ कई बार रिश्तों में खटास डाली, और 2018 के बाद अस्मा कभी भी मायके नहीं आई। उनके पिता का निधन भी वह उस समय नहीं कर पाई थी।
बदर अली और उनके बेटे अरशद ने 31 दिसंबर 2024 की रात को अस्मा और उनकी चार बेटियों को लखनऊ के एक होटल में बुलाया और वहां 1 जनवरी 2025 को उन सभी की निर्मम हत्या कर दी। पुलिस ने आरोपित बेटे अरशद को गिरफ्तार कर लिया, जबकि बदर अली फरार हो गया।
मायके पहुंचने की मुश्किलें:
हत्याकांड की जानकारी मिलने के बाद अस्मा के भाई आलम के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वह लखनऊ कैसे पहुंचेंगे। उनके पास यात्रा के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने चचेरे भाई से पैसे उधार लेकर गाड़ी बुक की और लखनऊ पहुंचे। उन्हें उम्मीद थी कि उनके ससुराल वाले भी शव लेने के लिए लखनऊ आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंततः आलम को शव लाने के लिए खुद आगे बढ़ना पड़ा और उन्हें संभल लौटना पड़ा।
चंदा जुटाकर शव का दफनाया गया:
संभल लौटने पर, आलम और उनके परिवार को शवों के दफनाने के लिए पैसे की आवश्यकता थी। चूंकि उनका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, उन्होंने स्थानीय लोगों से चंदा जुटाकर पांच शवों का दफनाने की व्यवस्था की। शवों को मायके में रखे जाने के बाद, 3 जनवरी 2025 की सुबह, जब ठंडी हवाएँ चल रही थीं, सभी पांच शवों का दफन करने के लिए जनाजे उठाए गए।
पुलिस सुरक्षा के बीच दफनाए गए शव:
पुलिस सुरक्षा के बीच शवों को दफनाने की प्रक्रिया की गई। शवों के साथ लखनऊ से दो पुलिस कर्मी भी आए थे। स्थानीय थाना पुलिस भी घटनास्थल पर पहुंची और शवों के दफनाने के दौरान सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखी। पूरे मोहल्ले में सन्नाटा था, और जब जनाजे उठे तो लोगों की आंखों में आंसू थे। लोग यह कहते हुए दिखाई दिए कि अस्मा लंबे समय से मायके नहीं आई थी, और जब वह मायके आती, तो इस तरह की दुखद स्थिति का सामना करती।
मायके पक्ष का आक्रोश:
अस्मा के परिवार ने आरोपियों, यानी उनके पति बदर खां और बेटे अरशद, को फांसी की सजा देने की मांग की है। आलम ने कहा कि उनका और बदर खां का कोई संबंध नहीं है, और उनके द्वारा की गई इस क्रूर हत्या की सजा सिर्फ फांसी होनी चाहिए। उनके चचेरे भाई दानिश ने कहा कि यह रिश्तों का खून है और मासूम बेटियों को भी नहीं बख्शा गया। ऐसे हत्यारोपियों को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है।
संभल में सुरक्षा बढ़ाई गई:
इस घटना के बाद, संभल के माहौल को देखते हुए पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था को सख्त कर दिया है। पुलिस फोर्स को हर जगह तैनात किया गया है, और स्थानीय लोगों को भी बहुत अधिक संख्या में एकत्र होने से रोक दिया जा रहा है। शुक्रवार की सुबह पांच शवों का दफनाए जाने का फैसला इसलिए लिया गया ताकि भीड़ न जुटे और स्थानीय मस्जिद में जुमे की नमाज के बाद कोई विवाद न हो।
संभल में एक दुखद दिन:
जब पांच जनाजे उठे, तो पूरे क्षेत्र में एक गहरा सन्नाटा था। सभी लोग इस हत्याकांड के बारे में चर्चा कर रहे थे और अस्मा के परिवार की कठिनाईयों का उल्लेख कर रहे थे। यह घटना न केवल एक परिवार के लिए अपार दुख लेकर आई, बल्कि पूरे समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सामाजिक और आर्थिक तंगी के कारण परिवारों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
यह दुखद घटना न केवल एक हत्या की कहानी है, बल्कि यह समाज के कमजोर वर्गों की संघर्षों को भी उजागर करती है।
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