Supreme Court: मुफ्त की रेवड़ी बांटना बंद करे सरकार; सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा की कड़ी निंदा की
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त राशन और धन देने के वादों की प्रथा की कड़ी निंदा की है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की मुफ्त सुविधाओं के कारण लोग काम करने के लिए इच्छुक नहीं होते क्योंकि उन्हें बिना किसी काम के मुफ्त राशन और पैसे मिल रहे हैं। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने की, जो शहरी इलाकों में बेघर लोगों के लिए आश्रय स्थल मुहैया कराने की मांग को लेकर सुनवाई कर रहे थे।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त राशन और धन देने के वादों की प्रथा की कड़ी निंदा की है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की मुफ्त सुविधाओं के कारण लोग काम करने के लिए इच्छुक नहीं होते क्योंकि उन्हें बिना किसी काम के मुफ्त राशन और पैसे मिल रहे हैं। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने की, जो शहरी इलाकों में बेघर लोगों के लिए आश्रय स्थल मुहैया कराने की मांग को लेकर सुनवाई कर रहे थे।
'बिना काम के मिल रहे पैसे'
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "दुर्भाग्य से, इन मुफ्त सुविधाओं के कारण लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें मुफ्त राशन मिल रहा है। उन्हें बिना कोई काम किए राशि मिल रही है।" उनके इस बयान ने मुफ्त राशन और अन्य सुविधाओं के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त की।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
कोर्ट ने आगे कहा कि, "हम उनके प्रति आपकी चिंता की सराहना करते हैं, लेकिन क्या यह अच्छा नहीं होगा कि इन लोगों को समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जाए और देश के विकास में इन्हें भी योगदान देने का मौका मिले?" इस टिप्पणी से यह साफ हो गया कि कोर्ट ने मुफ्त सुविधाओं के साथ-साथ लोगों के कामकाजी जीवन और सामाजिक विकास की दिशा में चिंता जाहिर की।
शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन पर सुनवाई
इस मामले में सुनवाई के दौरान, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने पीठ को बताया कि केंद्र शहरी गरीबी मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, जो शहरी बेघरों के लिए आश्रय स्थल और अन्य मुद्दों का समाधान करेगा। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से यह साफ करने को कहा कि यह मिशन कितने समय में लागू किया जाएगा। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई छह हफ्ते के लिए टाल दी।
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व टिप्पणी
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले भी मुफ्त योजनाओं को लेकर गंभीर टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारों के पास मुफ्त योजनाओं के लिए पैसा है, लेकिन जजों की सैलरी और पेंशन के लिए पैसा नहीं है।
फ्रीबीज को लेकर SC का नोटिस
पिछले साल अक्टूबर में भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था, जिसमें फ्रीबीज के एलान के खिलाफ जवाब मांगा गया था। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से यह मांग की थी कि वह चुनाव आयोग को निर्देश दे कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले मुफ्त की रेवड़ियों वाले वादे न करें।
सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणियां राजनीतिक वादों और सरकारी नीतियों पर नए सवाल उठाती हैं, जिनका असर आने वाले चुनावों और सरकार की कार्यप्रणाली पर पड़ सकता है।
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