SUPREME COURT का बड़ा फैसला: यूपी गैंग्सटर्स एक्ट के तहत मामले खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति पर आपराधिक आरोप हैं, तो भी संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत उसके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंग्सटर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत तीन व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज मामलों को खारिज कर दिया और इस मामले में न्यायिक समीक्षा की जरूरत पर जोर दिया।

सुप्रीम कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति पर आपराधिक आरोप हैं, तो भी संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत उसके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंग्सटर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत तीन व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज मामलों को खारिज कर दिया और इस मामले में न्यायिक समीक्षा की जरूरत पर जोर दिया।
अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अध्यक्षता में यह फैसला सुनाया। बेंच ने कहा कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ यूपी गैंग्सटर्स एक्ट के तहत मामले दर्ज किए गए हैं, उन्हें सामान्य नहीं बल्कि गंभीर मामलों के रूप में देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों के लिए गंभीरता को न्यायिक दृष्टिकोण से सीमित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे प्रत्येक मामले की विशिष्टता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
कोर्ट ने अधिकारियों को विवेकाधिकार देने से किया इंकार
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामले हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि उनके संविधानिक अधिकारों की अनदेखी की जाए। कोर्ट ने अधिकारियों को अनियंत्रित विवेकाधिकार देने पर असहमति व्यक्त की, और कहा कि ऐसे प्रविधान को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। यह भी कहा गया कि जितना कठोर या दंडात्मक कोई प्रविधान होगा, उतना ही अधिक सख्ती से उसे लागू करने की जरूरत होगी।
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इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश रद किया
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 17 जनवरी, 2024 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें तीन व्यक्तियों- जय किशन, कुलदीप कटारा और कृष्ण कटारा के खिलाफ प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार किया गया था। इन व्यक्तियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख इस आधार पर किया था कि उनके खिलाफ दर्ज तीन प्राथमिकी दो परिवारों के बीच संपत्ति विवाद से संबंधित थीं, जिनमें दीवानी प्रकृति के आरोप थे। इन आरोपों के मुताबिक, अधिनियम के तहत कार्यवाही को रद किया जा सकता था।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह साफ करता है कि संविधान में प्रदत्त अधिकारों की रक्षा प्राथमिकता होनी चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ दायर आपराधिक मामले उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करें। कोर्ट ने इस फैसले के माध्यम से न्यायिक समीक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया और आदेश दिया कि कानून की सख्ती को उचित तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
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