सुप्रीम कोर्ट ने 14 वर्षीय नाबालिग के अपहरण और सामूहिक बलात्कार के आरोपी की जमानत रद्द की, पीड़िता को पक्षकार न बनाने पर जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने 14 वर्षीय नाबालिग के अपहरण और सामूहिक बलात्कार के आरोपियों को दी गई जमानत को रद्द कर दिया है। यह जमानत इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को निरस्त करते हुए आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की।
नई दिल्ली, 17 दिसंबर: सुप्रीम कोर्ट ने 14 वर्षीय नाबालिग के अपहरण और सामूहिक बलात्कार के आरोपियों को दी गई जमानत को रद्द कर दिया है। यह जमानत इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को निरस्त करते हुए आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सोमवार को यह निर्णय सुनाया और आरोपियों, खड़गेश उर्फ गोलू और करण को निर्देश दिया कि वे 30 दिसंबर या उससे पहले निचली अदालत में आत्मसमर्पण करें। कोर्ट ने कहा कि उन्हें जमानत देने का उच्च न्यायालय का निर्णय गलत था, क्योंकि इस मामले में पीड़िता को पक्षकार नहीं बनाया गया था, जो कि कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है।
आरोपों को संज्ञान में लेते हुए जमानत रद किया
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर की गई याचिका पर सुनवाई की, जो वकील प्रणव सचदेवा के माध्यम से उत्तरजीवी (पीड़िता) की ओर से दायर की गई थी। याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान पीड़िता को सुनवाई का हिस्सा नहीं बनाया गया, जो उसके अधिकारों का उल्लंघन है। इस जमानत को रद्द करने का फैसला तब लिया गया जब यह सामने आया कि आरोपी दो व्यक्तियों पर गंभीर आरोप हैं, जिसमें 14 वर्षीय नाबालिग का अपहरण और सामूहिक बलात्कार शामिल है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन आरोपियों को जमानत दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द करते हुए मामले की गंभीरता को ध्यान में रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में पीड़िता को न केवल कानूनी प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए, बल्कि उसकी सुरक्षा और अधिकारों को भी सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने जमानत देने के उच्च न्यायालय के फैसले को न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि न्यायिक दृष्टि से भी गलत ठहराया।
यह फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न्यायिक प्रणाली में पीड़िताओं के अधिकारों की रक्षा और न्याय सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।
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